शिव वंदना

 प्रथम सुमिरन करूं गौरी पुत्र गणेश,

 सत नमन करता तुझे गिरजापति महेश।

 बसहा सवारी जिनकी वस्त्र मृगक्षाला,

 क्या नहीं देते हैं औघड़ डमरु वाला ।



तन पर भस्म रमाए गले सर्प माला ,

बना है रूप तेरा भोले क्या निराला

जटा से बहती है सदा गंगा की धारा,

रहतें हैं साथ सदा भूत प्रेत बैताल तुम्हारा।

देख के मन है डोला भाँग का यह गोला,

सत नमन करता भोले पहन कर गेरुआ चोला।

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