स्वाभिमान

 

गुलों की अरमान तो शहीदों की रण भूमि थी,

न देवताओं के मुकुट न बालाओं की गजरा थी।

पर राज यहाँ अब उल्टा ही नजर आता अक्सर ,

होते कुर्बान गुल अब गजराओं पर ही हंसकर ।

शहीदों की इज्जत कहाँ घोटालों का ही राज है,

वह मातमी धुन कहाँ अब बेईमानो का साज है ।

दुनियाँ बदली हर कुछ बदला अब नया जमाना है ,

चारो तरफ देखो घोटाले और चोरी का जमाना है।

जो जितना भ्रष्ट हुआ है अब वही देश का प्राणेता है,

अब आजाद,भगत सिंह जैसे कहाँ कोई नेता है ।

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