दर्द
दर्द मानव का कुछ ऐसा होता है
चाहकर भी नही दिखा सकता है
कही अपनो का दर्द विचलित करता
कही अपनो से ही दर्द मिल जाता है ।
जीवन मे तपती वो धाप सहन करता है
दर्द में देखो वो यूँ घुट-घुट कर जीता है
बिना बताये इस दुनियाँ से चला जाता है
हाय यह बेकसी कैसी वो मुँह नही खोलता है ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें