जीवन के झंझवात
यूँ तो टूटा कई बार कई बार जोड़ा गया यूँ टूटते और जुटते अब बिखर गया मैं । हर बार खुद को संभाला जीवन के कटीले राहों पर अब चुभन बर्दास्त नही पथरीली राहों पर । क्या लेकर आया हूँ क्या लेकर जाऊँगा दर्दों को पीया हूँ दर्द से ही मर जाऊँगा । गरीबी अभिशाप न थी जीने का हौशले बड़े थे आखिर कब तक बताओ मैं यूँ ही ठोकर खाऊँगा । अब सब्र नही है दिल को अब न कोई अरमान सजाऊँगा रोते हुए आया था धरा पर रोते ही मर जाऊँगा ।